Sunday, September 23, 2012

गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत


गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्यशास्त्रक संकल्पनाक संग गजेन्द्र ठाकुरक उल्कामुखक अपार सफलताक बाद...
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे ...
"समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर...

गजेन्द्र ठाकुरक "गंगा ब्रिज"
रिटायरमेंट आ मृत्युक बीच संघर्षमे के जीतत...
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे एहि धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नहि मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि

संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे

मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़नि झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।



मैथिली नाटककेँ.....................
नव आयाम दैत ............................
नाटकक नव युगमे प्रवेश प्रवेश करबैत अछि.......
 "गंगा ब्रिज".......................................................
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत............................
निर्देशक बेचन ठाकुर..................................................................
मंच "समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर.........................................................................

“विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१३”-निर्देशक बेचन ठाकुर [किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए, कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।] कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]

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