Monday, September 3, 2012

मि‍थि‍लाक बेटी- समीक्षा शिव कुमार झा टिल्लू


सा संवत् सन २००८ सँ लऽ कऽ वर्तमान कालकेँ अद्यतन मैथि‍ली साहि‍त्‍यि‍क आन्‍दोलनक क्रांति‍-काल कहल जा सकैत अछि‍। ऐ‍ अवधि‍मे रंग-बि‍रंगक साहि‍त्‍य सरि‍तासँ सजल पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशन प्रारंभ भेल अछि‍। जइ‍मे प्रमुख अछि‍- वि‍देह ई-पत्रि‍का, वि‍देह-सदेह, मि‍थि‍ला दर्शन (पुनर्प्रकाशन), पूर्वोत्तर मैथि‍ल, झारखंडक सनेस आदि‍-आदि‍। ऐ‍ पत्र-पत्रि‍काक प्रयाससँ नव-नव साहि‍त्‍यकारक प्रवेश मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे भेल। जइ‍मेसँ कि‍छु साहि‍त्‍यकार तँ अपन रचनासँ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर एहेन स्‍थान बना लेलनि‍ जइ‍सँ हुनका जौं काल पुरूष माने मैन ऑफ टाइम कहल जाए तँ कोनो अति‍शयोक्‍ति‍ नै‍‍ हएत। ऐ‍ रचनाकारक भीड़मे एकटा साम्‍यवादी आ बहि‍र्मुखी प्रति‍भासँ सम्‍पन्न रचनाकार छथि‍- श्री जगदीश प्रसाद मंडल। हि‍नक व्‍यक्‍ति‍गत जीवन कोनो रूपक हुअए मुदा साहि‍त्‍यि‍क सृजनशीलतासँ हि‍नका बहि‍र्मुखी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक व्‍यक्‍ति‍ कहल जा सकैत अछि‍।
हि‍नक लघुकथा ‘बि‍साँढ़भैंटक लावा घर-बाहरमे आ चुनवाली मि‍थि‍ला दर्शनमे प्रकाशि‍त होइते मैथि‍ली पत्रि‍काक संपादक मंडलक संग-संग प्रबुद्ध पाठकक मध्‍य हड़होरि‍ मचि‍ गेल। पहि‍ने आउ आ पहि‍ने पाउक आधारपर वि‍देहक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुर हि‍नक रचना सभकेँ अपन पत्रि‍कामे छपबए लेल हथि‍या लेलनि‍। ऐ‍ प्रकारक शब्‍दक प्रयोग करबाक हमर तात्‍पर्य अछि‍ जे जगदीश बाबू कोनो नव रचनाकार नै‍‍ छथि‍, ति‍रसठि‍ बर्खक माजल साहि‍त्‍यकार छथि‍, मुदा हि‍नक रचनाक प्रदर्शन नै‍‍ भेल छल। समग्र रचना-संसार हि‍नक पुत्र श्री उमेश मंडल जीक कम्‍प्‍यूटरमे ओझराएल छल कि‍एक तँ छपबाक लेल कैंचा कतएसँ एत?
आदरणीय संपादक गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍शेष अनुग्रह आ श्रुति‍ प्रकाशनक अधि‍ष्‍ठाता श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारी जीक कृपासँ हि‍नक एकसँ बढ़ि‍ कऽ एक रचना हथि‍या नक्षत्रक गनगुआरि‍ जकाँ पाठकक आगाँ आबि रहल अछि‍। ऐ‍ पुष्‍पांजलि‍ महक एकटा फूल लऽ हम पाठकक सोझा राखि‍ रहल छी- मि‍थि‍लाक बेटी। मि‍थि‍लाक बेटी एकटा नाटकक नाओं अछि‍। शीर्षकसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍ जे हमरा सबहक समाजक वनि‍ताक स्‍ति‍त्‍व आ अस्‍मि‍तासँ ऐ‍ रचनाक संबंध अछि‍। मुदा पोथीक गर्भावलोकनक बाद हमर मोनसँ ई भ्रम भागि‍ गेल। ऐमे समाजक वि‍षमताक स्‍पष्‍ट दर्शनक अनुभूति‍ भेल। जगदीशजी साम्‍यवादी वि‍चार धाराक सम्‍पोषक छथि‍, तँए समाजमे पसरल व्‍याधि‍पर श्रमक वि‍जय, श्रमजीवीक वि‍जय, दृष्‍टि‍कोणक वि‍जय, इमानक वि‍जय, सम्‍यक भौति‍कताक वि‍जय, बौद्धि‍क आ चेतनाक वि‍जय देखएबाक प्रयास कएलनि‍।
पाँच अंकक ऐ‍ नाटकमे नौ गोट पुरूष पात्र आ पाँचटा नारी पात्र छथि‍। रचनाक केन्‍द्र बि‍न्‍दु छथि‍ पैंतालीस बर्खक वि‍कट पुरूष पात्र- बाबू कर्मनाथ- एकटा प्रशासनि‍क अधि‍कारी। वि‍कट ऐ‍ दुआरे कि‍एक तँ भ्रष्‍ट समाजक मध्‍य कर्तव्‍यपरायण मानदार व्‍यक्‍ति‍ आ बाबू ऐ‍ दुअारे कि‍एक तँ अधि‍कारी छथि‍। स्‍नातक उर्तीर्ण कएलाक बाद हि‍नक पि‍ता सोमनाथ हि‍नक बि‍ह एकटा भौति‍कवादी परि‍वारमे पक्का कए लेलनि‍। द्रव्‍य, धन धान्‍य आ बीस बिगहा जमीनक जुआरि‍मे। मुदा ओ कर्मनाथ जीक मौन समर्थनक आशमे बैसल छलाह। ऐ‍ मध्‍य जेठ मासक गरमीमे एकटा कायाहीन आ नि‍र्धन व्‍यक्‍ति‍ हि‍नक दलानपर अएलनि‍, व्‍यथि‍त आ थाकल अपन कन्‍याक हेतु वर तकबाक क्रममे सोमनाथक दलानपर अचेत भऽ गेलाह। सोमनाथसँ हुनक व्‍यथा नै‍‍ देखल गेल। आेइ‍ गरीबक कन्‍यासँ बि‍याह करबाक लेल आतुर भऽ गेलाह। कालान्‍तरमे ई बि‍ह सम्‍पन्न तँ भऽ गेल मुदा परि‍वारमे सामंजस्‍य नै‍‍ रहि‍ सकल। पि‍ता सोमनाथ आ दू भाँइ क्रमश: नूनू आ लालबाबू हि‍नक नि‍र्णएसँ दुखी भऽ गेला, कि‍एक तँ कुबेरक भंडारक आशपर कर्मनाथजी नोन छीटि‍ देलनि‍। प्रति‍भाशाली छात्र कर्मनाथ प्रशासनि‍क अधि‍कारी बनि‍ गेलाह परंच हि‍नक इमान भौति‍कतापर भारी पड़ि‍ गेल, जइ‍सँ  नव-नव समस्‍या उत्‍पन्न भऽ गेल। पत्नी चमेली, पुत्र फुलेसर आ पुत्री द्वय चम्‍पा आ जूही- ई अछि‍ हि‍नक परि‍वार। भावक सर आ वि‍श्वासक शतदलक संग जीवन क्रम चलैत रहल। िपता सोमनाथ अदूरदर्शी व्‍यक्‍ति‍ छलाह, जइ‍सँ अन्‍य दुनू पुत्र अवण्‍ड भऽ गेलनि‍। कर्महीन नूनू आ लालबाबू जथा बेच-बेच‍ क कर्मनाथक बराबरि‍ करबाक प्रयास कऽ रहल छलथि‍। पि‍तासँ महि‍मा मंडि‍त होएबाक कारणें दुनूक जीवन नारकीय भऽ गेल। परि‍वारक दशा ओ दि‍शाकेँ देखि‍ कऽ कर्मनाथक माए आशाक आश टूटि‍ रहल छल। कर्मनाथ जीक पि‍तृ परि‍वारमे मात्र हि‍नक माएक व्‍यक्‍ति‍त्‍व सोझराएल छल। कि‍एक नै‍‍ रहत, सभ माएक इच्‍छा होइत अछि‍ हुनक पुत्रक नाओंसँ समाज गौरवान्‍वि‍त हुअए।
जगदीशजी ऐ‍ नाट्य कथाक नायकक स्‍पष्‍ट उद्घोषण नै‍‍ कएलनि‍ मुदा हमर मतसँ ऐ‍ नाटकक नायक छथि‍ वि‍कास, एकटा सेवा नि‍वृत्त शि‍क्षक। आदर्श आ सहज वि‍चारधाराक व्‍यक्‍ति‍ श्री वि‍कास अपन समाजक चि‍तंक छथि‍। मि‍थि‍लाक गाम एखनो वि‍कासक धारामे पाछाँ पड़ल अछि‍। शि‍क्षाक अभाव, सामाजि‍क समरसताक अभाव आ साधनक अभावक कारण वि‍कास सन प्रबुद्ध व्‍यक्‍ति‍क ग्राम्‍य समाजमे आवश्‍यकता अछि‍। गामक प्राय: नव आ अधवयसू पीढ़ी हुनक छात्र रहलनि‍ अत: हुनक सलाहकेँ मानैत छथि‍। श्रीचन कि‍सान हाटपर प्रचार करबाक लेल आएल शंकर बीज कंपनीक प्रलोभनमे आबि टमाटरक वि‍देशी बीआ खरीद लैत छथि‍। टमाटर उपजाक कोन कथा जे लत्ति‍ओ गलि‍ गेल। श्रीचन संताप आ क्रोधक मारे आकुल छलाह। वि‍कासजी हुनका सान्‍त्‍वना दैत कहलनि‍ जे प्रचारक चकाचौंधमे नै‍‍ अएबाक चाही, अपन स्‍वदेशी वस्‍तु आेइ‍ वि‍देशी समानसँ सोहनगर अछि‍। वि‍कासजीक प्रयासँ कर्मनाथक पुत्री चम्‍पाक बि‍ह रामवि‍लास मि‍स्‍त्रीक पुत्र मदनसँ तइँ कएल गेल। ऐ‍ बि‍हके केन्‍द्र बि‍न्‍दु मानि‍ ऐ‍ पोथीक रचना कएल गेल अछि‍।
आब प्रश्न उठैत अछि‍ जे ऐ‍ पोथीमे नव की भेटल? मि‍थि‍लाक बेटी नाटक ‘कर्म प्रधान वि‍श्व करि‍ राखा सि‍द्धान्‍तक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍। एकटा कर्मठ आ मानदार व्‍यक्‍ति‍केँ समाजमे की-की सहए पड़ैत अछि‍, आेइ‍ परिप्रेक्ष्‍यक मार्मि‍क चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। कथाक मूलमे कर्मनाथक बिह क्रममे आएल एकटा गरीब (चमेलीक पि‍ता) व्‍यक्‍ति‍क मनोदशाक प्रस्‍तुति‍ नीक अछि‍। ओ व्‍यक्‍ति‍ गरीब छथि‍ मुदा चार्वाक दर्शनक पालक। पेटमे खढ़ नै‍‍ सि‍ंहमे तेल जेबीमे कैंचा नै‍‍ मुदा नौ हन्नाक बटुआ जइ‍मे भोगक वस्‍तु छलि‍या सुपारी पान आ तमाकू। हमरा सबहक गाममे एहि‍ना होइत अछि‍, भोजन नै‍‍ मुदा पान अवश्‍य। पग-पग पोखरि‍ माछ मखान... मधुर बोल मुस्‍की मुख पान... नेना पढ़लक, नै‍‍ पता, कनि‍याकेँ पथ्‍य भेटल, नै‍‍ जनै छी, बेटीक लेल दूध अछि‍... नै‍‍। मुदा पान अति ‍आवश्‍यक, हाथी मरि‍ गेल, छान आ पग्‍घा लऽ कऽ बौआ रहल छी। कर्मनाथक अपन पत्नी चमेलीक संग वार्तालापमे खट्टर ककाक तरंगक दर्शन होइत अछि‍। गाममे प्रचलि‍त लोकोक्‍ति‍क हास्‍य मुदा सत्‍य प्रस्‍तुति‍।
कर्मनाथ जीक पुत्रक नाओं फुलेसर, प्रशासनि‍क अधि‍कारी भऽ कऽ एहेन नाओं.....। ऐ‍सँ हुनक गामक प्रति‍ सि‍नेहक झाँकी भेटैत अछि‍। गाममे एहने नाओं सभ होइत अछि‍। अपन दुनू पुत्री आ पुत्रकेँ छायावादी रूपमे जीवनक शि‍क्षा दैत छथि‍ कर्मनाथ। एना करब आवश्‍यक कि‍ए तँ ऐ‍सँ जि‍ज्ञासा बढ़ैत अछि‍। रामवि‍लास सेवानि‍वृत मि‍स्‍त्री छथि‍। बाल्‍यकाल साधनक अभावमे युवावस्‍था संघर्षमे बि‍ता कऽ भौति‍क साधन प्राप्‍त कएलनि‍। जीवनक अंति‍म पड़ावमे माधुरीसँ, माने अपन पत्नीसँ, अपन जीवन-यात्राक व्‍याख्‍यान करैत छथि‍, आश्चर्यमे पड़ि गेलौं, जि‍नका संग चालीस बर्खक यात्रा कएलनि‍ ओ हि‍नक जीवन दर्शन नै‍‍ जनैत छलीह। हमरा सबहक समाजमे ऐ‍ प्रकारक घटना होइते अछि‍। गरीब नेनपनक बाद सोझे प्रौढ़ भऽ जाइत छथि‍। जे कर्मवादी छथि‍ हुनक अंति‍म अवस्‍था  सुखमय नै‍‍ तँ......। अपन कर्मक नावकेँ कलकत्तामे मजगूत कऽ सोझे गाम आबि जाइत छथि‍। मातृभूमि‍क प्रति‍ सि‍नेह, गामेमे गैरेज खोलबाक योजना अछि, चौघारा घर बनाएब, दलान अवश्‍य रहत, कि‍एक तँ दलान समाजक मर्यादा थि‍क, गामक जीवन शहरसँ सुखमयी अछि‍। ऐ‍ पोथीमे पड़ाइनवादक वि‍रोध कएल गेल अछि‍।
कर्मनाथक चरि‍त्र पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा लि‍खि‍त ‘बसात नाटकक नायक कृष्‍णकान्‍तसँ मि‍लैत अछि‍। रामवि‍लास जीवन संघर्षमे वि‍जयी भेलाह तँए पुत्रक बिह आदर्श करताह। वि‍कास जीक चरि‍त्र नाटकक लेखक जगदीशबाबूसँ मि‍लैत अछि‍। साम्‍यवादी, ग्रामीण सभ्‍यताक दि‍ग्‍दर्शक। ऐ‍ पोथी‍मे जाति‍वादी व्‍यवस्‍थाक वि‍रोध कएल गेल अछि‍। आन गामक स्‍वजातीयकेँ भोजमे नि‍मंत्रण देबासँ अनि‍वार्य अछि‍ अपन गामक सभ जाति‍केँ आमंत्रि‍त करब। ि‍कएक तँ बेर-कुबेरमे पाँजरि‍ लागल लोक काज दैत छथि‍, चाहे ओ कोनो जाति‍क हुअए
ऐ‍ पोथीमे जीवनक सभ रूपक व्‍यापक दर्शन कएल गेल अछि‍। कुलीन व्‍यक्‍ति‍ जनि‍क परि‍वार नीचाँ मुँहे जा रहल अछि,‍ आेइ‍ परि‍वारक कन्‍याक बि‍ह उर्ध्‍वमुखी साधारण परि‍वारक पुत्र (जे आब सम्‍पन्न छथि‍) हुनकासँ भऽ सकैत अछि‍। ऐ‍ पोथीमे अन्‍हारपर इजोतक वि‍जय देखाओल गेल अछि‍। भौति‍कतापर बौद्धि‍कता आ सम्‍यक जीवनक जीत ऐ‍ पोथीक केन्‍द्र बि‍न्‍दुमे समेटल अछि‍ पुत्रक बिहमे ति‍लक लेबासँ बेसी अछि‍ कुलीन कन्‍याक चयन। सम्‍पूर्ण पोथीमे देशज शब्‍दक प्रयोग कएल गेल अछि‍। पोथीक अंति‍म पृष्‍ठपर श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक कथन- मैथि‍ली साहि‍त्‍यक इति‍हास जगदीश प्रसाद मंडलसँ पूर्व आ जगदीश प्रसाद मंडलसँ- पढ़लौं, पहि‍ने तँ अनसोहाँत लागल, मुदा पोथीक अध्‍ययन कएलाक पश्‍चात् हमरा सहज लागल। भाषा अत्‍यन्‍त सामान्‍य मुदा रस, अलंकार आ छंदसँ परि‍पूर्ण अछि‍। कलात्‍मक शैलीमे जगदीशजी अंक-अंकमे अपन दर्शनकेँ सहेजि‍ लेने छथि‍। हि‍नक ई रचना कोनो वि‍शेष कथाकार वा नाटककारसँ‍ प्रभावि‍त नै‍‍। हि‍नक रचनामे राजकमलजी, पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा, हरि‍मोहन बाबू, धूमकेतु, ललन ठाकुर सन रचनाकारक शैलीक मि‍श्रि‍त दर्शन होइत अछि‍। मि‍थि‍लाक बेटी अर्थनीति‍सँ प्रभावि‍त अछि‍ मुदा सम्‍यक अर्थनीति‍सँ। अर्थपर मानवताक वि‍जय, जगदीशजीक वि‍श्वास नीक लागल।
जेना कोनो व्‍यक्‍ति‍ पूर्ण नै‍‍ भऽ सकैत अछि‍ तहि‍ना कोनो रचनाक संग होइत अछि‍। मि‍थि‍लाक बेटी पोथीमे कि‍छु त्रुटि‍क दर्शन सेहो भेल। प्रथमत: ऐ‍ पोथीक शीर्षक अप्रासंगि‍क लागल। बेटी तँ ऐ‍ दर्शनक माध्‍यम मात्र अछि‍, स्रोत नै‍‍। ऐ‍मे मानवीयताक जीत देखाओल गेल अछि‍ बेटीक जीवन तँ घटना मात्र थि‍क।
ऐ‍ नाटकक भाषा सरल शनै: शनै: गमनीय अछि‍, एकर कलात्‍मक मंचन कएल जा सकैत अछि‍।
नि‍ष्‍कर्षत: जगदीश प्रसाद मंडलजी हमरा सबहक बीच एकटा नव जीवनक आयाम लऽ कए आएल छथि‍। बहुरंगी जीवनक आयाम आ सकारात्‍मक सोचक आयाम। मानवीय मूल्‍य एखनो धरि‍ जीवि‍त अछि‍। ऐ‍ तरहक घटना कठि‍न अछि‍ मुदा असंभव नै‍‍। वि‍श्वास आ कर्मक संग जीवन जीबाक प्रयत्‍न करबाक चाही। ऐ‍ पोथीक शब्‍द-शब्‍दमे झंकार अछि‍। भाषा प्रवाहमयी लागल। प्रकाशन दलक प्रयास नीक, शब्‍द संयोजन आ संपादन अति‍ उत्तम।
पोथीक नाओं- मि‍थि‍लाक बेटी
नाटककार- जगदीश प्रसाद मंडल
प्रकाशक- श्रुति‍ प्रकाशन राजेन्‍द्र नगर दि‍ल्‍ली।
मूल्‍य- १६० टाका मात्र।
प्रकाशन वर्ष- सन् २००९
पोथी पाप्‍ति‍क स्‍थान- पल्‍लवी डि‍स्‍ट्रीब्‍यूटर्स, वार्ड न.६, नि‍र्मली, सुपौल, मोवाइल न. ९५७२४५०४०५

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